तिलहन फसलों को दोहरी मार: बिजाई क्षेत्र में कमी और बाढ़ से फसलों को भारी नुकसान की आशंका

चालू खरीफ सीजन में देश की तिलहन फसलों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक ओर जहां राष्ट्रीय स्तर पर इन फसलों की बिजाई में गिरावट देखी जा रही है, वहीं दूसरी ओर गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में भारी वर्षा और बाढ़ के चलते खेतों में पानी भर जाने से फसल को गंभीर नुकसान की आशंका जताई जा रही है। इन हालातों का सीधा असर तिलहन उत्पादन पर पड़ सकता है। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अगस्त तक खरीफ तिलहन फसलों का कुल रकबा घटकर 185.17 लाख हेक्टेयर रह गया है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के 190.27 लाख हेक्टेयर से 5.10 लाख हेक्टेयर कम है। साथ ही, यह क्षेत्रफल पांच साल के औसत 194.63 लाख हेक्टेयर से भी 9.46 लाख हेक्टेयर कम है। तिलहन की प्रमुख फसलें—सोयाबीन, मूंगफली और तिल—तीनों का रकबा पिछली बार से घटा है। सूरजमुखी की बिजाई भी कम हुई है, जबकि अरंडी के रकबे में कुछ बढ़ोतरी दर्ज की गई है, हालांकि इसे औद्योगिक तिलहन माना जाता है। विवरण अनुसार: सोयाबीन का रकबा घटकर 120.28 लाख हेक्टेयर हो गया है (पिछले वर्ष: 125.50 लाख हेक्टेयर) तिल का रकबा घटकर 9.97 लाख हेक्टेयर रह गया (पिछले वर्ष: 10.55 लाख हेक्टेयर) मूंगफली का रकबा 46.98 लाख हेक्टेयर से घटकर 46.76 लाख हेक्टेयर हो गया सूरजमुखी की खेती 70 हजार हेक्टेयर से घटकर 64 हजार हेक्टेयर पर आ गई केवल अरंडी का क्षेत्रफल बढ़ा है, जो 6.07 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 7.04 लाख हेक्टेयर हो गया है गुजरात, जो मूंगफली और अरंडी का प्रमुख उत्पादक राज्य है, वहां पिछले कुछ दिनों से लगातार तेज बारिश हो रही है और मौसम विभाग ने आगामी दिनों में भी भारी बारिश की चेतावनी दी है। इससे खेतों में जलभराव की स्थिति बनी हुई है, जिससे फसलों को नुकसान पहुंच सकता है। राजस्थान में पहले ही बाढ़ जैसे हालात से फसलों को भारी नुकसान हो चुका है। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। चूंकि इन चार राज्यों से ही देश के कुल खरीफ तिलहन उत्पादन का 80% से अधिक हिस्सा आता है, ऐसे में वहां नुकसान होने से राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादन में भारी गिरावट आ सकती है। बिजाई क्षेत्र में आई गिरावट और प्राकृतिक आपदा के दोहरे प्रभाव के चलते इस बार खरीफ तिलहन उत्पादन पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इससे न सिर्फ किसानों को आर्थिक नुकसान हो सकता है, बल्कि खाद्य तेलों की कीमतों पर भी असर पड़ सकता है।

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